सबका भला अपना भला
बहुत पुरानी बात है। एक नगर में एक व्यापारी रहता था। वह बहुत परिश्रमी था। उसने जीवन भर परिश्रम करके खूब धन कमाया था। इसके साथ-साथ वह बहुत दयालु भी था। जरूरतमंदों, गरीबों की मदद करने के लिए वह सदैव तैयार रहता था। उसकी स्त्री भी परोपकारी स्वभाव की थी। गरीबों को खाना खिलाना। उन्हें वस्त्रादि देना उसके दैनिक कार्यों में शामिल था।
इतने सब पुण्य कर्मों के बाद भी उनकी कोई संतान नहीं थी। इस बात का दुख दोनों को था। इससे भी अधिक दुख उन्हें इस बात का था कि उनके बाद कहीं उनकी धन-संपत्ति कहीं गलत हाथों में न पड़ जाए। कोई उसका दुरुपयोग न करें। इसलिए बहुत सोच-विचार कर उन्होंने निर्णय लिया कि वे किसी ऐसे युवक को गोद लेंगे जो उनकी तरह ही दूसरों का भला सोचने वाला हो, परंतु ऐसे युवक को खोजा कैसे जाए।
उनकी धन-संपत्ति के लालच में हर कोई स्वयं को परोपकारी ही सिद्ध करने का प्रयास करता। आखिर उन्होंने इसका एक उपाय निकाला उन दोनों ने भिखारियों के जैसा वेश बनाया और मुख्य राजमार्ग की तरफ़ चल दिए। वहाँ जाकर उन्होंने एक बहुत बड़े पत्थर को कोशिश करके सड़क के बीच में रख दिया। वे स्वयं सड़क के किनारे बैठकर भिक्षा माँगने लगे। अब वे देखने लगे कि सड़क पर आते-जाते लोग पत्थर को देखकर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं।
जो भी सड़क से गुजरता कोई बचकर निकल जाता तो किसी को पत्थर से ठोकर लग जाती जिसे ठोकर लगती वह बड़बड़ाता हुआ निकलता, "न जाने किसने यह इतना बड़ा पत्थर सड़क पर रख दिया।" परंतु कोई भी उसे हटाने का प्रयास न करता। व्यापारी और उसकी स्त्री यह सब देख रहे थे। अब उन्हें निराशा होने लगी थी। लगता है, कोई भी इस पत्थर को नहीं हटाएगा।
शाम होने लगी थी। तभी उन्होंने देखा एक मज़दूर सा दिखाई देने वाला युवक सड़क पर आया। वह अपनी धुन में चला जा रहा था कि उसने सड़क पर पड़े पत्थर को देखा। वह बोला, "अरे, इतना भारी पत्थर सड़क पर किसने रखा होगा! अब तो अँधेरा हो चला है, इससे किसी को भी चोट लग सकती है। मुझे इस यहाँ से हटाना चाहिए।" इतना कहकर वह दिनभर का थका-थकाया अब उस पत्थर को धकेलकर सड़क के किनारे ले जाने की कोशिश करने लगा। आखिरकार वह सफल हो गया।
अन्न अब वह निश्चित होकर आगे बढ़ा कि पत्थर से किसी को कोई चोट नहीं लगेगी। तभी भिखारी और भिखारिन बने व्यापारी और उसकी स्त्री भिक्षा के लिए उसे पुकारने लगे। “बेटा, आज सुबह का एक दाना भी भेट में नहीं गया। बड़ी कृपा होगी अगर भूखों को भोजन मिल जाए तो।" से
लड़के का दिल पसीज गया। वह बोला, “मेरे पास तो भोजन नहीं है। देने के लिए और कुछ भी नहीं है। बस आज की यह मज़दूरी है, जिससे मैं अपने लिए भोजन खरीदने वाला था। यदि इससे आप दोनों के लिए भोजन की व्यवस्था हो सके तो मुझे सचमुच प्रसन्नता होगी।" इतना कहकर उस लड़के ने अपनी उस दिन की मज़दूरी उनके कटोरे में डाल दी।
लड़के का इतना करना था कि उन दोनों की आँखों से आँसू बहने लगे। उन्होंने तुरंत खड़े होकर उसे गले से लगा लिया और बोले, "हमें हमारा उत्तराधिकारी मिल गया।" लड़का उन्हें आश्चर्य से देखने लगा तो व्यापारी ने उसे अपनी संतानहीनता से लेकर सड़क में पत्थर रखने तक की पूरी कहानी सुना दी। वे उसे लेकर घर लौट आए और अब चिंतामुक्त होकर दान-पुण्य करते हुए जीवन व्यतीत करने लगे।
दूसरों का भला करने वाले का ईश्वर स्वयं भला करता है।
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