HINDI BLOG : संगति का असर

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Tuesday, 27 June 2023

संगति का असर


संगति का असर

एक बहुत ही शरारती बालक था, परंतु माँ का कहा कभी न टालता था। उसका पूरा दिन इधर-उधर शरारतें करने में, लोगों को परेशान करने में ही बीतता था। कभी पिता जी के जूते छिपा देता तो वे ढूंढ-ढूँढ़कर परेशान हो जाते तो कभी वह दो गायों की पूँछ रस्सी से आपस में बाँध देता। वे दोनों बेचारी बेजुबान रंभा-रंभा कर परेशान हो जाती।

वह बालक असल में शरारती बच्चों की टोली के साथ खेलता था। बस वहीं से हर दिन नई शरारत कर उसे आजमाने लगता। उसकी शिकायतें आने लगी तो परिवार के लोग भी परेशान हो उठे परंतु बालक समझकर उसे कोई दंड भी नहीं देते थे।

एक दिन बालक की माँ ने उसे बुलाया और कहा, "बेटा, यह चाकू ले जाओ और आँवले के पेड़ की थोड़ी छाल निकाल लाओ। दवा बनानी है।" बालक का मन तो अपने दोस्तों के साथ खेलने का था. परंतु माँ का कहा वह कभी न टालता था। इसलिए चुपचाप चाकू लेकर चल दिया। बड़ी मुश्किल से ढूँढ़ने पर उसे एक जगह आँवले का पेड़ दिखाई दिया। उसने चाकू से पेड़ की थोड़ी छाल निकाली और वापस अपने घर की तरफ चल दिया। उसने देखा रास्ते में एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर कुछ संत बैठे हैं। वह थक गया था. इसलिए कुछ देर आराम करने के लिए वह भी वहीं बैठ गया।

एक संत ने उसे अपने पास बुलाया और प्यार से पूछा, "बेटा तुम यह चाकू लेकर कहाँ गए थे।" बालक ने उत्तर दिया, "मेरी माँ ने दवा बनाने के लिए आँवले के पेड़ की छाल मँगाई थी। मैं वही छाल लेने गया था।" संत ने मुस्कराते हुए कहा, "बेटा, तुम्हे पता है, हम मनुष्यों की तरह अन्य प्राणियों की तरह पेड़-पौधों में भी जीवन होता है। चाकू लगने पर उन्हें भी दर्द का अनुभव होता है।

इसीलिए हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि जब पेड़ की छाल भी लें तो पहले उससे हाथ जोड़कर क्षमा माँगे कि किसी का कष्ट दूर करने के लिए आपको कष्ट पहुँचा रहे हैं। तुम्हें यह तो पता ही है कि पेड़-पौधे हमें जीवन देते हैं। इसीलिए उनकी पूजा की जाती है।"

संत के मधुर वचनों का बालक के कोमल मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा वह ऑवले की छाल लेकर घर लौट आया। उसने छाल माँ को दी और अंदर बैठकर चाकू से अपने पैर की छाल निकालने लगा। पैर से खून निकलने लगा बालक दर्द से तड़प उठा। माँ अंदर आई और पूछा, "यह क्या कर रहे हो?" बालक ने आँखों में आँसू भरकर कहा, "माँ मैं जानने का प्रयास कर रहा था, कि आँवले के पेड़ को कितना दर्द हुआ होगा, जब मैंने उसकी छाल निकाली।”

माँ ने बालक को गले से लगा लिया। माँ समझ गई थी कि अवश्य ही उनके बच्चे को अब सही संगति मिल गई है। इसके बाद वह बालक अकसर उन संतों के उपदेश सुनने जाने लगा। उसकी दूसरों को परेशान करने वाली सब शरारतें बंद हो गई। यही बालक आगे चलकर प्राणी मात्र के प्रति दया का भाव रखने वाले संत नामदेव बने।




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