कहानी- धोबी की सजा
अद्भुत नगर में राजा अनोखे सिंह राज करते थे। उनके नाम की तरह ही उनके सब काम भी सदैव अनोखे ही होते थे। उन्होंने अपने राज्य की सीमा के चारों ओर बहुत गहरी खाई खुदवा दी थी। इस कारण उनका राज्य बाहरी आक्रमणों से पूरी तरह सुरक्षित हो गया था। हर सुबह लकड़ी का एक बड़ा, मज़बूत और चौड़ा तख्ता राज्य से खाई के आर-पार लगा दिया जाता था जिससे बाहर आने-जाने का काम सरलता से हो जाता था।
शाम होते ही उस तख्ते को उठा लिया जाता था। इससे राज्य की स्वतंत्रता और सुरक्षा बनी रहती थी। एक बार रानी का सोने का हीरों से जड़ा हार चोरी हो गया। बहुत तलाशने पर भी जब हार दासियों को न मिला तो रानी ने राजा से इस विषय में चर्चा की। राजा को आश्चय हुआ। उन्होंने मुख्यमंत्री को यह मामला सौंपते हुए जल्दी से जल्दी चोर को पकड़ने का आदेश दिया। मुख्यमंत्री बहुत बुद्धिमान थे। उन्होंने उसी समय से महल में आने-जाने वाले सब लोगों पर नज़र रखनी शुरु कर दी। राजपरिवार के कपड़े धोने वाले धोबी पर मुख्यमंत्री को कुछ संदेह हुआ।
मुख्यमंत्री स्वयं कुछ सैनिकों को साथ ले धोबी के घर तलाशी लेने गए तो तलाशी में रानी का हार मिल गया। मुख्यमंत्री ने धोबी को महाराज के सामने पेश किया और उसका अपराध बता दिया। महाराज ने वह हार रानी को दे दिया और धोबी को क्षमा कर दिया। महाराज के इस अनोखे निर्णय पर सभी को आश्चर्य हुआ।
रानी भी नाराज़ होते हुए बोली. "उसने मेरा हार चुराने का साहस किया और आपने उसे ऐसे ही बिना कोई दंड दिए ही छोड़ दिया। "महाराज ने उत्तर दिया, "प्रिय रानी, क्षमा राजा का धर्म है। हर किसी को सुधरने का कम से कम एक अवसर अवश्य मिलना चाहिए।" मुख्यमंत्री ने भी शिकायत की, "महाराज, अपराधी को इस तरह बिना दंड दिए छोड़ना उचित नहीं।" महाराज ने उन्हें भी वही कहकर शांत कर दिया, जो रानी को कहा था।
उधर धोबी महल से निकलकर मन-ही-मन मुसकराते हुए सोचने लगा कि यह तो बड़ा अच्छा राजा है। इसने मुझे कोई सजा ही नहीं दी। इस बार नगरसेठ के यहाँ चोरी करूँगा। इस बार मैं सावधानी से चोरी करूँगा और पकड़ा नहीं जाऊँगा। उसने कुछ समय बाद नगरसेठ के यहाँ चोरी की, परंतु वह पकड़ा गया। नगरसेठ ने रात में उसे अपनी तिजोरी खोलते हुए पकड़ा और उसी समय शोर मचा दिया। गाँव वाले इकट्ठे हो गए। सबसे मिलकर उसे इतना मारा कि उसके दोनों हाथ बेकार हो गए।
अगले दिन उसे दरबार में पेश किया गया। राजा ने कहा, "इसे सुधरने का अवसर मिला था, पर इसने अपनी गलती से कोई सबक नहीं लिया। इसे इसका दंड मिल गया है, अब यह कोई काम करने लायक नहीं रहा। इसे जीवन-भर भीख माँगकर गुजारा करना पड़ेगा, परंतु जिन लोगों ने इसकी यह हालत की है, उनके लिए दंड है कि वे इसके परिवार का लालन-पालन करेंगे।" कुछ देर दरबार में शांति रही और फिर राजा के इस अनोखे निर्णय पर सब ओर जय-जयकार होने लगी।
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