HINDI BLOG : कर्तव्यबोध - ओ.हेनरी

कहानी 'आप जीत सकते हैं'

'आप जीत सकते हैं एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर ट्रेन स्टेशन पर बैठा था। एक युवा कार्यकारी अधिकारी वहाँ से गुजरा और उसने कटोरे में...

Sunday, 18 June 2023

कर्तव्यबोध - ओ.हेनरी

कर्तव्यबोध - ओ.हेनरी 

सिपाही अपनी प्रभावशाली, मुस्तैद चाल में चहल-कदमी कर रहा था। उस समय पर सड़क पर अधिक लोग नहीं थे, इसलिए उसकी यह चाल किसी पर रौब डालने के लिए नहीं थी। अभी रात के आठ ही बजे थे, लेकिन हवा के ठंडे झोंकों के साथ हलकी वर्षा के कारण मार्ग सुनसान था। वह उस क्षेत्र की दुकानों के ताले देखता हुआ आ रहा था और लग रहा था मानो शांति का साम्राज्य उसकी उपस्थिति के कारण ही है। एक स्थान पर उसकी चाल धीमी हो गई। एक दुकान के दरवाज़े पर उसे एक आकृति दिखी, जिसके मुँह में अधजला सिंगार था। सिपाही उस ओर बढ़ा, तो वह व्यक्ति बोला, "कोई खास बात नहीं है। मैं एक मित्र की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। बीस साल पहले यहाँ पर एक रेस्तराँ था और मैंने अपने मित्र से वादा किया था कि पूरे बीस साल बाद इसी स्थान पर हम लोग मिलेंगे।”
"हाँ"- सिपाही बोला, “पाँच साल पहले वह रेस्तराँ बंद हो गया।"

दुकान के दरवाज़े पर खड़े आदमी ने अपना सिगार जलाया और प्रकाश में सिपाही ने देखा कि उस व्यक्ति का रंग गोरा था, चौकोर आकार के मुखड़े पर आकर्षक आँखें थीं
और दाहिनी आँख के ऊपर चोट का निशान था। उसने गले में स्कार्फ़ पहन रखा था, जिस पर हीरे जड़ा एक पिन लगा था।

वह व्यक्ति बोला, "बीस साल पूर्व, आज की रात मैं अपने परम मित्र जिमी के साथ रेस्तरों में खाना खा रहा था। हम दोनों यहीं न्यूयॉर्क में पैदा हुए और बड़े हुए। मैं तब अठारह वर्ष का था और जिमी बीस का। दूसरे दिन सवेरे ही मैं न्यूयॉर्क छोड़कर दक्षिण की ओर अपनी किस्मत आजमाने जाने वाला था। जिमी को भी बहुत कहा था, परंतु वह तो न्यूयार्क को दुनिया का दिल समझता था। सो उस रात हमने फ़ैसला किया- बीस साल बाद, इसी रात इसी समय हम यहीं मिलेंगे, चाहे हमें संसार के किसी भी कोने से क्यों न आना पड़े।" "काफ़ी रुचिकर लग रहा है यह सब सुनना।" सिपाही ने कहा, "लेकिन क्या इस बीच तुम दोनों में कोई पत्र-व्यवहार नहीं हुआ?" "हाँ, कुछ दिनों तक तो हुआ. परंतु एक-दो वर्षों पश्चात् हमें एक-दूसरे के ठिकाने पता नहीं रहे और उधर दक्षिणी अमेरिका में मैं भी एक स्थान पर अधिक देर नहीं रहा, लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि यदि मेरा दोस्त जिमी आज जिंदा है, तो मुझसे मिलने अवश्य आएगा और यह जानकर कितना खुश होगा कि मैं हजारों मील दूर से उससे मिलने आया हूँ।" उसने अपनी कलाई पर रत्नजड़ित घड़ी देखी और बोला, "दस बजने में तीन मिनट बाकी हैं। हम यहाँ से पूरे दस बजे विदा हुए थे। "

"लग रहा है कि आपने इन बीस वर्षों में काफ़ी धन कमाया है?"- सिपाही ने पूछा। " बेशक! मुझे यकीन हैं जिमी ने मुझसे आधा धन तो अवश्य कमाया होगा। न्यूयार्क में जिमी जैसा व्यक्ति इससे अधिक क्या कर सका होगा. लेकिन उधर की ओर तो तेल व्यापारियों के साथ काम करने के कारण हर आदमी की बुद्धि तेज हो जाती है।"

सिपाही अपनी छड़ी घुमाता हुआ चलने लगा और बोला, "अच्छा, मैं चलता हूँ। आशा है आपका दोस्त आता होगा। क्या आप रुकोगे उसके लिए?"

"सोचता हूँ, आधा घंटा तो और रुकना चाहिए। अगर वह जीवित है, तो अवश्य आएगा।"

'अच्छा, शुभ रात्रि!" कहते हुए सिपाही आगे की दुकानों के ताले देखता हुआ चला गया।

वर्षा कुछ तेज हो गई थी। हवा भी कुछ अधिक तीखी थी, सो इक्का-दुक्का आने-जाने वाले अपने ओवरकोटों के कॉलर ऊपर उठाकर तेज़ी से घरों की ओर लपकने लगे थे। वह व्यक्ति वहीं द्वार की आड़ में खड़ा, बीस मिनट तक अपना सिगार पीता रहा। तब एक लंबा तगड़ा व्यक्ति, कॉलर ऊपर उठाए उसकी ओर आया और आते ही पूछा,

"क्या तुम बॉब हो?" द्वार पर खड़ा व्यक्ति उछल पड़ा, "अरे! तुम जिमी हो क्या?"

आगंतुक ने उसके दोनों हाथ थामकर कहा, "क्या किस्मत है। मुझे यकीन था कि तुम यहीं मिलोगे। बीस साल बहुत लंबा समय होता है। पुराना रेस्तरी तो समाप्त हो गया, वरना वहीं बैठकर खाना खाते। किस्मत ने कैसे-कैसे खेल-खिलाए और कैसे बीता तुम्हारा जीवन?"

"बहुत बढ़िया! मुझे जीवन में सब कुछ मिला, लेकिन जिमी तुम बहुत बदल गए हो। लंबाई में भी तोन-चार इंच बढ़ गए हो। 

'बस बीस के बाद थोड़ा लंबा हो गया था। "

"न्यूयॉर्क में तुम भी तो सफल रहे होगे ?" "खास नहीं, बस नगर की सेवाओं में मेरा भी कुछ योगदान रहा। चलो किसी और जगह बैठकर गप्प मारते हैं। "

दोनों व्यक्ति बाँह में बाँह डाले गपशप करते हुए चलने लगे। जो व्यक्ति अपना भाग्य आजमाने न्यूयॉर्क छोड़कर गया था, वह बढ़-चढ़कर अपनी सफलता का राग अलाप रहा था और दूसरा व्यक्ति उसकी बातों को सुन रहा था।

चौराहे पर एक स्टोर के जगमगाते प्रकाश में दोनों पहुँचे, तो दोनों ने एक-दूसरे को देखा। एक बोला "तुम जिमी नहीं लगते। बीस साल का समय तो बहुत है, लेकिन इतना नहीं कि एक आदमी की नाक ही बिल्कुल बदल डाले।" “लेकिन बीस साल में एक अच्छे आदमी को बुरा आदमी बनाने का सामर्थ्य तो है।" यह कहकर उस लंबे व्यक्ति ने आगे कहा, "आप पिछले दस मिनट से बंदी बना लिए गए हैं, मिस्टर सिल्वी बॉब! शिकागो से आपको पकड़ने के आदेश हमारे पास हैं। आप चुपचाप मेरे साथ चलें, इसी में आपकी भलाई है। हाँ,

मेरे पास एक लिखा हुआ परचा है, जो आपको देने के लिए मुझे कहा गया है। इसे आप यहीं प्रकाश में पढ़ सकते हैं। " परचे पर दो-चार पक्तियाँ लिखी हुई थीं और परचा समाप्त करने तक उसके हाथ काँप रहे थे। पर्चे में लिखा था- "बॉब, मैं नियत समय पर उसी स्थान पर तुमसे मिलने आया था। जब तुमने

अपना सिगार सुलगाया, तो तुम्हारा चेहरा देखकर मुझे पता लग गया कि शिकागों से तुम्हें ही पकड़ने के लिए आदेश आए हुए हैं। इस कार्य को करने में मैंने स्वयं को असमर्थ पाया. अतः यहाँ थाने आकर किसी

अन्य व्यक्ति को यह कार्य करने भेज रहा हूँ।”

                                                                                                            -ओ० हेनरी

No comments:

Post a Comment

If you have any doubt let me know.